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मेरी प्यारी माँ
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माँ एक शब्द नही है संसार बसता है उसमें, अपने खून से सींचकर हमे जीवन देती है, कितनी भी मुश्किलें क्यूँ न सहे, मगर कभी कुछ नही कहती है, कब मुझे भूख लगी कब मुझे प्यास लगती है, न जाने कैसे समझ जाती है माँ, बिना मेरे कुछ कहे सब समझ जाती है माँ, खुद तो भूखे रह लेगी माँ, अपने हिस्से का हर निवाला क्यूँ बांट देती है माँ, पालपोसकर इतना बड़ा कर देती है माँ, फिर भी कभी एहसान जताती नही माँ, कभी प्यार से डांट देती है माँ, और एक पल में ही मना लेती है माँ, नसीब वालो को मिलता है प्यार माँ का, मेरे दिल मे बसती है मेरी माँ, कितना प्यार देती है माँ ये शब्द कम पड़ जायेंगे, मेरे ज़िन्दगी का अहम हिस्सा है मेरी माँ, उसने ही ये संसार दिखाया, मुझे चलना सिखाया हर कदम पर गिरने से बचाया, मेरी प्यारी माँ तुम न होती तो मैं ना होती, इन आँखों से कैसे संसार को देखती, बस मेरे पास सदा रहना प्यारी माँ, कभी खुद से दूर न करना मेरी माँ, 'आकांक्षा पाण्डेय'उपासना हरदोई(उत्तर प्रदेश)
वासना नही प्रेम है ये
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वासना नही प्रेम है ये- अगर मैं तुमसे अपने दिल का हर हाल कहूं, तो वो प्रेम है मेरा, अगर मैं तुमसे मिलने का जिक्र करूं, तो वो मिलन जिस्म का नही रूह से रूह को मिलने की ख्वाहिश होगी, मैं अगर तुमसे ढेर सारी बाते करूँ, तो वो प्रेम है मेरा छलावा नही, तुम अगर मुझे आजमाना चाहो तो आजमा लो, कोई मेरे जज्बात समझे न समझे, मगर तुम समझ लो बस, मुझे अब फिक्र ही नही है मेरे कल की, एक तुम्हे पाने के बाद मैं बेफिक्र हो गयी हूँ, मुझे नही चाहिये कोई और, बस तुमसे मिलने के बाद हर खुशी मिल गयी, तमन्ना यही है कि तुम्हारे चेहरे की मुस्कान बनूँ, ये प्रेम है मेरा, कोई वासना नही की मेरा दिल भर जायेगा, ये दिल और मैं तुम्हे कभी भूल जाऊँगी, ऐसा कभी कोई दिन नही आयेगा, "उपासना पाण्डेय"आकांक्षा आज़ाद नगर हरदोई(उत्तर प्रदेश)
कहानी- उम्मीद की नई किरण
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सोना एक स्कूल में पढ़ाती थी। घर के कामो के लिए उसने पास की हो झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली कांता को रख लिया था कांता का पति पास की ही फैक्ट्री में लेबर था जो पैसा मिलता उससे किशोर शराब पी जाता। कांता की 2 बेटियां थी शोभा और सुंदरी । किशोर को सिवाय शराब के कुछ नही दिखता।कांता भले ही खुद अनपढ़ थी मगर वो अपनी बेटियों को पढ़ा लिखा कर किसी लायक बनाना चाहती थी।दिन रात मेहनत करके जो पैसे मिलते उनको एक करके जोड़ती ।ताकि उसकी बेटियां भी स्कूल जाकर पढ़ सके। कांता जहाँ रहती थी वहां का माहौल बेहद ही गन्दा था यूँ कहे तो सिवाय गंदगी के वहाँ कुछ नही था और ऊपर से अशिक्षित लोग जिनका जीवन सिर्फ मजदूरी करके पैसा कमाना और उस पैसे से शराब और खाने का ही प्रबंध कर पाते थे वो लोग, तो बस्ती के लोग अपनी बच्चियो को पढ़ने के लिए न भेज कर कुछ ऐसा काम करते थे जिसको सुनकर शर्म आती थी कि कोई अपनी बेटियों से भी ऐसा काम करवा सकता है। और वो भी सिर्फ चंद पैसों के लिये।बस यही समाज था कांता का।जिससे वो बाहर निकलना चाहती थी। दोनो बेटियों के बारे में सोचकर न जाने क्यूँ कभी कभी कांता कुछ ज्यादा ही परेशान रहती। उस झुग्गी के पास जो
कविता- दिल की बात दिल ही जाने
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कविता- दिल की बात दिल ही जाने तुम हकदार हो उन शब्दों के, जो आज तक कभी कह नही पायी, तुम न मिले होते तो क्या लिख पाती, इन शब्दों को लिखने के लिए, जज्बात तुम बने , मैं कलमकार थी, तुम शब्दकोश बने, मैं कोयला से हीरा बन गयी, रास्ते का पत्थर थी मैं, मन्दिर की खूबसूरत मूरत बन गयी, बहुत ख़ुशनसीब हूँ मैं, जो तुम्हारे प्यार के काबिल बनी, प्यार तो आज सब करते हैं, फिर सब एक दिन दोराहे पर छोड़ जाते हैं, ये कैसा नसीब था मेरा, ठोकर मिली और टूट गयी मैं, हर रोज खुद को कोसती रही, फिर तुम मिले अचानक एक अनजाने मोड़ पर, और फिर मोहब्बत की कहानी शुरू हुई, एक सच्चा हमसफ़र मिल गया, बेवफाई के दौर में सच्ची और पवित्र मोहब्बत मिली, जिंदगी के जो सबक मिले, उनको झुठलाने लगी हूँ मैं, कुछ वक्त ने दर्द दिया था उसको भूलने लगी हूँ, ख्वाब मेरे बस टूटने को ही थे, तुम आये और समेट लिया एक पल में ही, तिनके सी बिखरने लगी थी जिंदगी मेरी, अब तुम्हारे नाम के साथ मेरी जिंदगी जुड़ने लगी है, तुम्हारे लिए खुद को सवारने लगी हूँ, महकते गुलाब हो तुम मेरी बगिया के, तुमसे ही ये वीरान सी ज़िन्दगी महकने लगी है,